भिखारिन जैसा हूलिया लिए मुंबई की सड़कों पर खाक छानने वाली उस 25 साल की विमंदित लड़की के पीछे एक बहुत गहरा राज छुपा था।
लेकिन कहते हैं कि मायानगरी मुंबई की अत्यंत बिजी लाइफ में इंसान के पास दूसरों के लिए तो क्या खुद अपने लिए भी वक्त नहीं होता, फिर कोई सड़क किनारे फुटपाथ पर रहने वालों के लिए क्यों सोचेगा। किसी को इस भिखारिन के पीछे की कहानी जानने में कोई रुचि नहीं थी, सिवाए एक के।
मुंबई की रहने वाली एक फैशन डिजाइनर और एक्टिविस्ट रिया छाबड़िया ने जब इस विमंदित लड़की को गाड़ियों और आते-जाते लोगों पर पत्थर फैंकते, गालियां देते हुए देखा, तो वह अपने आप को रोक नहीं सकी। पहले तो रिया ने भी औरों की तरह विमंदित की हरकतों को नजरअंदाज किया, मगर फिर उसकी हालत देखने के बाद रिया से रहा नहीं गया। जब उसने इस विमंदित की कहानी जाननी चाही, तो चौंकानेवाले तथ्य सामने आए।

कहानी मुम्बई से नहीं कहानी तो राजस्थान के अलवर से शुरू हुई थी। विमंदित ने रिया को अपना नाम अर्चाना बताया। रिया ने एक एनजीओ से संपर्क कर उसका रिहैबिलिटेशन करवाने में मदद की और फिर इस एनजीओ ने बिछड़ी हुई लड़की को अलवर उसके खुद के घर तक पहुंचा दिया।
अर्चना को साल 2015 में एक फैशन डिजाइनर एवं एक्टिविस्ट यहां लेकर आई थी, जिसके बाद में उसका पुनर्वास शुरु किया गया। थोड़ी हालत सुधरने के बाद अर्चना ने दिमाग पर जोर देकर अलवर स्थित अपना पता बताया। फिर अगस्त 2016 में एनजीओ वर्कर्स ने अर्चना को उसके परिवार तक पहुंचाया।
अब मानसिक स्थिती ठीक होने के बाद अर्चना ने एनजीओ वर्कर्स को बताया कि उसके मां-बाप के गुजर जाने के बाद से अर्चना अपने तीन भाईयों के साथ रह रही थी, लेकिन अचानक उसने मॉडलिंग में कॅरिअर बनाने की ठानी और दिल्ली का रुख किया।
दिल्ली में कुछ एजेंसियों से संपर्क करने के बाद अर्चना को वहां काम नहीं मिला, तो उसने मुंबई का रुख किया, लेकिन वहां भी किस्मत ने जब साथ छोड़ दिया, तो अर्चना इतनी टूट गई कि फिर उसने कभी अपने घरवालों तक से बात नहीं कि और खानाबदोश की जिंदगी जीने लगी।
एनजीओ में काम करने वाले एक वर्कर ने बताया कि अब अर्चना की हालत पहले से बेहतर है और एनजीओ भी लगातार उससे संपर्क बनाए रखती है।