झीरम हादसे से लेकर 7 साल की जांच और रिपोर्ट, और बदलती सरकारों का जांच में दखल, अब आगे क्या होगा जानिए सब कुछ
newsmrl.com From Jhiram accident to 7 years of investigation and report, and changing governments interfere in the investigation, now know what will happen next update by narayan bung

झीरम हादसे से लेकर 7 साल की जांच और रिपोर्ट, और बदलती सरकारों का जांच में दखल, अब आगे क्या होगा जानिए सब कुछ
सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि आयोग रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपती है फिर एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ उसे विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है, तब तक इसे कोई दूसरा अध्ययन नहीं कर सकता कोई खोल नहीं सकता, ये गोपनीय है। सीएम ने कहा कि जो संपत्ति विधानसभा की है जिसे वहां प्रस्तुत किया जाना है उसे क्या बाहर खोला जा सकता है।
पुलिस ने भी इस मामले में राष्ट्रीय एजेंसी के हस्तक्षेप से पहले जांच की, लेकिन उसमें भी किसी साजिश का खुलासा नहीं हुआ। हाल में राज्यपाल की सौंपी गई न्यायिक आयोग की रिपोर्ट का खुलासा नहीं हुआ है। अब हालात ये हैं कि राज्यपाल की ओर से रिपोर्ट सरकार को पहुंचेगी और अगर वह इनके निष्कर्ष पर संतुष्ट नहीं हुई, तो विधि विशेषज्ञों का दावा है कि सरकार जांच के नए बिंदु फिर से तय करके नया जांच आयोग गठित कर सकती है, जो इन तय बिंदुओं पर जांच करने में सक्षम होगा।
झीरम घाटी में कांग्रेस के काफिले पर 25 मई 2013 को हुए नक्सली हमले में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल (कुछ दिन बाद अस्पताल में निधन) तथा बस्तर के कद्दावर नेता महेंद्र कर्मा समेत 31 लोग शहीद हुए थे। पुलिस ने एफआईआर कर जांच शुरू की ही थी कि यह मामला जांच के लिए अचानक एनआईए को सौंप दिया गया।
इसके बाद 2018 में प्रदेश में सरकार बदली और सीएम भूपेश बघेल ने इस पूरे मामले की नए सिरे से एसआईटी जांच करने की घोषणा कर दी। लेकिन एसआईटी को एनआईए ने केस डायरी सौंपने से इंकार कर दिया, इसलिए जांच शुरू नहीं हो पाई। पिछले साल (मई-2020) में झीरम हमले में शहीद कांग्रेस नेता उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र ने बस्तर पुलिस के सामने एक और एफआईआर लिखाई थी। इस पर पुलिस जांच करती, लेकिन एनआईए ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। तब से सभी प्रशांत मिश्रा आयोग की जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे।
28 मई 2013 गठन, 30 जुलाई 2013, 20 फरवरी 2014, 25 फरवरी 2015, 31 अगस्त 2015, 23 फरवरी 2016, 17 अगस्त 2016, 6 फरवरी 2017, 21 अगस्त 2017, 12 फरवरी 2018, 24 अगस्त 2018, 28 फरवरी 2019 को बढ़ा कार्यकाल।
झीरम हमले में साजिश के पहलू की वृहत जांच नहीं हो पाई है। तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से 2016 में जब सीबीआई जांच की अनुशंसा की गई थी, तब दिसंबर 2016 में ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इंकार कर दिया था। यह बात दो साल तक छिपाई गई। यह जानकारी देते हुए कांग्रेस के वकील सुदीप श्रीवास्तव का कहना है कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद यह बात सामने आई, तब एसआईटी का गठन किया गया।
इसकी जांच के लिए केस डायरी नहीं दी गई। 26 मई 2020 को जब जितेंद्र मुदलियार ने एफआईआर दर्ज कराई, तब भी एनआईए ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और उन्हें जांच देने की मांग रखी। इस मामले में भी जांच नहीं हो सकी। एनआईए ने जब जांच शुरू की थी, तब षड्यंत्र की आशंका जताई थी। नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी के नेता गणपति और रमन्ना के शामिल होने का अंदेशा था, लेकिन चार्जशीट में उल्लेख ही नहीं किया गया। इसे दहशत दंतेवाड़ा के स्थानीय नक्सलियों द्वारा किया गया हमला ही बताया गया।
आयोग ने हाल में राज्यपाल अनुसुइया उइके को रिपोर्ट सौंप दी। जानकारों का कहना है कि जब तक यह रिपोर्ट सरकार तक नहीं पहुंचती, तब तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाएगी। राज्य सरकार को रिपोर्ट मिलेगी, तब जांच के जो बिंदू तय किए गए थे, उस पर संतुष्टि की स्थिति में आगे कार्यवाही की जाएगी या सरकार नया आयोग गठित कर सकती है। हालांकि विधि विभाग के जानकार अफसरों का यह भी कहना है कि मिश्रा आयोग की रिपोर्ट से सरकार अगर संतुष्ट न भी हो, तब भी वह इस रिपोर्ट की जांच नहीं कर सकती है।

4800 पेज की रिपोर्ट होने से राज्यपाल अनुसुइया उइके अध्ययन में समय ले सकती हैं। उसके बाद सरकार को भेजेंगी। जो शीत सत्र से पहले संभव नहीं नजर आता। तब तक यह अभी राजनीति का मुद्दा बना रहेगा। दोनों ही दल शीत सत्र में पेश करने की मांग को लेकर बयानबाजी जारी रखेंगे। पेश होने की स्थिति में रिपोर्ट पर चर्चा होगी।
भाजपा सरकार ने न्यायिक जांच आयोग के समक्ष जांच के लिए 9 बिंदू तय किए थे। झीरम घाटी में 25 मई 2013 को किन परिस्थितियों में घटना घटित हुई? क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था? क्या सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त थी अथवा सुरक्षा व्यवस्था में किसी प्रकार की चूक हुई? क्या सुरक्षा के लिए सभी निर्धारित प्रक्रियाओं, आवश्यक व्यवस्थाओं का पालन सुरक्षा तंत्रों में द्वारा किया गया था? क्या सुरक्षा के लिए सभी निर्धारित व्यवस्थाओं एवं निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन रैली के आयोजकों द्वारा किया गया था? और यदि हां तो उसे किस प्रकार से सुनिश्चित किया गया था? और यदि नहीं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या छगपु एवं अन्य सशस्त्र बलों के बीच समुचित समन्वय रहा? भविष्य में ऐसी घटना से बचने सुरक्षा एवं प्रशासकीय कदम उठाने के संबंध में सुझाव तथा उपाय? 2019 में कांग्रेस सरकार ने 8 बिंदु और जोड़े।
- 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला किया था।
- • 27 मई 2013 को 9 जांच बिंदुओं पर अधिसूचना जारी हुई, जिसे तीन माह में पूरा करना था।
- • 28 मई 2013 को जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग बना।
- • 7 जनवरी 2019 को आयोग ने पूर्व सरकार द्वारा तय 9 बिंदुओं पर रिपोर्ट आदेश के लिए सुरक्षित रखा।
- • 21 जनवरी 2019 को कांग्रेस सरकार ने जांच के 8 नए बिंदु जोड़े, इसकी अधिसूचना प्रकाशित की।
- • 11 अक्टूबर 2019 को आयोग में अंतिम सुनवाई हुई और सुनवाई अचानक समाप्त कर दी गई।
- • 6 नवंबर को आयोग ने रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। हालांकि इसे सरकार के बजाय राज्यपाल को सौंपा गया।
- इस दौरान कांग्रेस रिपोर्ट को मानने के बजाए नए सिरे से नया आयोग बनाकर जांच की मांग करेगी। ऐसे में नियमानुसार मिश्रा आयोग की जांच पर तो जांच नहीं हो सकती लेकिन नए बिंदू या छोड़े गए बिंदुओं को शामिल करते हुए उनकी जांच के लिए आयोग बनाया जा सकता है। यह आयोग सुप्रीम कोर्ट/ हाईकोर्ट के सिटिंग या रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में बनाया जा सकता है। यह सब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में ही तय हो पाएगा।
- • एनआईए ने शुरुआती चार्जशीट में झीरम हमले को नक्सलियों की दहशत फैलाने वाली घटना बताया था
- • सरकार तय कर सकती है जांच के नए बिंदु, नया आयोग कर सकेगा जांच: विधि विशेषज्ञ
- • 31 की मौत हुई थी, इनमें नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ल शामिल
- • 03 अलग-अलग जांच हो चुकी है झीरम कांड की, दो की रिपोर्ट आई
पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के करीबी और झीरम घाटी कांड के चश्मदीद दौलत रोहड़ा ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी कि एनआईए द्वारा झीरम हमले में पीड़ित लोगों के बयान ही नहीं लिए गए। इसके बाद एनआईए ने पूछताछ के लिए बुलाया था। तब तक हाईकोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया था, लेकिन उन्होंने लिखित व मौखिक रूप से बयान देने से इंकार कर दिया था। करीब 9 माह पहले रोहड़ा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर एनआईए द्वारा केस डायरी एसआईटी को सौंपने की मांग की थी।
इस संबंध में कोई जवाब नहीं आया तो केंद्रीय गृह सचिव को पत्र लिखकर भी यही मांग की थी। इस पर भी केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो रोहड़ा ने आरटीआई के तहत दस्तावेज मांगे थे। फिलहाल इस मामले में भी आगे कोई कार्यवाही नहीं की गई है। एनआईए ने पहले 23.09.2014, फिर 16.9.2015 को कोर्ट में अंतिम रिपोर्ट पेश की, लेकिन उनके समेत कई प्रत्यक्षदर्शियों के बयान नहीं लिए गए हैं।